मिल गया आरुषि का असली ‘हत्यारा’!
9 साल पहले फ्लैट नंबर एल-32 में Aarushi की हत्या हुई थी और 9 साल बाद आरुषि के उसी फ्लैट के 2 दरवाजे से जुड़ी है कत्ल और कातिल की कड़िया। कातिल कितना भी शातिर क्यों ना हो कोई ना कोई सबूत पीछे जरुर छोड़ता है। ऐसे ही तमाम सबूत दो दरवाजों के पीछे मौजूद थे जो कातिल को 9 साल पहले ही बेनकाब कर देते लेकिन जांच एजेंसियों ने दो दरवाजों के पीछे मौजूद सबूत जुटाने की बजाय पूरे केस को उलझा दिया। मौका-ए-वारदात पर जांच एजेंसी की उसी गलती का नतीजा है कि आज तक Aarushi का कातिल आजाद है और बेगुनाह होते हुए भी आरुषि के मां-बाप को जेल तक जाना पडा।
नोएडा पुलिस की पहली गलती
नोएडा पुलिस जब फ्लैट नंबर L- 32 में पहुंची तो देखा कि आरुषि के मम्मी पापा वहां पर मौजूद थे, पुलिस ने आते ही आरुषि के कमरे का दरवाजा खोला। ये वो दरवाजा था जिसके पीछे आरुषि का कत्ल हुआ था। ये उस कमरे का दरवाजा था जिसकी अगर ठीक से जांच होती तो कातिल के सबूत जरूर मिलते। पुलिस को इस क्राइम सीन को प्रोटेक्ट करना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया, नतीजा ये हुआ कि पुलिस को इस कमरे से कातिल के निशान तक नहीं मिले।
नोएडा पुलिस की दूसरी गलती
क्राइम सीन पर पहुंची नोएडा पुलिस के सामने आरुषि का खून से लथपथ डेडबॉडी पड़ी हुई थी। बावजूद इसके पुलिस ने कत्ल के हथियार यानी आला-ए-कत्ल को खोजने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। यही वजह है कि कातिल तो कातिल आज तक आरुषि केस में आला-ए-कत्ल बरामद नहीं हुआ। कत्ल की तफ्तीश के दौरान जांच एजेंसियों को सुराग की बिनाह पर पुख्ता सबूत जुटाने होते है लेकिन आरुषि केस में ऐसा नहीं हुआ। यही वजह है कि इंवेस्टिगेशन टीम हवा-हवाई दावे करती रही यानी जांच टीम सही नतीजे तक नहीं पहुंच सकी कि कत्ल किस हथियार से हुआ था। बावजूद इसे आरुषि के मम्मी-डैडी को कसूरवार साबित करने में जुटे रहे।
नोएडा पुलिस की तीसरी गलती
पुलिस इंवेस्टिगेशन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि क्राइम सीन की सही तरीके से जांच तक नहीं की गई। आरुषि के मां-बाप सदमे में थे और मौके पर पहुंची पुलिस पूरे मामले की खाना पूर्ति में जुटी थी। पुलिस ने इतनी जहमत तक नहीं उठाई कि कातिल का सुराग तलाशने के लिए फ्लैट और आसपास से सुराग तलाशती लेकिन ऐसा नहीं हुआ वरना दूसरे दरवाजे के पीछे मौजूद हेमराज की डेडबॉडी भी 16 मई को बरामद हो जाती और पुलिस को कातिल के सुराग मिल जाते। चौंकाने वाली बात ये है कि हेमराज की डेडबॉडी मिलने के बाद भी पुलिस ने इतने सनसनीखेज हत्याकांड को गंभीरता से नहीं लिया।
जांच एजेंसियों की लापरवाही ऐसी थी कि जब नोएडा पुलिस को L- 32 की छत से फिंगर प्रिंट उठाए तब पुलिस को करीब पन्द्रह लोगों के फिंगर प्रिंट मिले जो छत पर हेमराज का शव देखने गई भीड़ के थे। अगर नोएडा पुलिस ने L 32 के छत की घेराबंदी कर ली होती तो शायद आज कातिल सलाखों के पीछे होता। आखिर क्यों नोएडा पुलिस से लेकर सीबीआई की दो-दो टीमें उस शातिर कातिल तक नहीं पहुंच सकीं। तो सुनिए आरुषि हेमराज के कत्ल में उस कातिल ने दो दरवाजों का इस्तेमाल किया था और उन्ही दोनों दरवाजों के पीछे दो दो डेडबॉडीज पड़ी हुई थीं।
पहला दरवाजा वो जिसके पीछे आरुषि का शव मिला और दूसरा दरवाजा वो जिसके पीछे हेमराज का शव मिला। पहले दरवाजे तक तो पुलिस कत्ल के कुछ ही घंटे बाद पहुंच गई। दावा किया गया सबूतों को उठाने का और कातिल के गिरेबान तक जल्द से जल्द पहुंचने का लेकिन दूसरे दरवाजे के पीछे किसी की नजर नहीं पड़ी।
हर कोई आरुषि की हत्या से सन्न था। इसी बीच क्राइम सीन पर पहुंचे यूपी पुलिस के रिटायर्ड डीएसपी के के गौतम। के के गौतम के पहुंचते ही आरुषि मर्डर केस में नया मोड़ आ गया। के के गौतम को फ्लैट नंबर L32 के ठीक सामने से होकर जाने वाली सीढ़ियों पर खून के निशान दिखे और वो छत पर पहुंचे लेकिन जैसे ही छत का दरवाजा खुला के के गौतम की आंखे फटी की फटी रह गई क्योंकि जिस नौकर को पुलिस कातिल मान रही थी, उसका शव आरुषि के शव से कुछ ही कदमों की दूरी पर पड़ा हुआ था।
के के गौतम ने आनन फानन में नोएडा के एसपी सिटी को फोन किया और पूरी घटना के बारे में बताया, तुरंत ही नोएडा पुलिस की टीम घटनास्थल पर पहुंच गई लेकिन सबूतों के लिहाज से पुलिस को वहां से कुछ खास हासिल नहीं हुआ, क्योंकि मई की उमस भरी गर्मी की वजह से हेमराज के शव को भी पहचानना मुश्किल हो रहा था।