पंजाब में एक और घोटाला आया सामने,सरकार गऊ सेस में 97.24 करोड़ का लगा चुना

पंजाब में एक और घोटाला सामने आया है। अब गऊ सेस को लेकर एक बड़ा घोटाला सामने आया है। यह मामला पिछली शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस की सरकारों के समय का है।
शराब ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने के लिए तीन वर्षों तक गऊ सेस ही नहीं वसूला गया। इसकी वजह से सरकार को 97.24 करोड़ रुपये का चूना लगा।
इस बात का खुलासा महालेखाकार की रिपोर्ट (CAG Report) में हुआ है। इस संबंध में तत्कालीन गऊ सेवा कमीशन के चेयरमैन रहे कीमती भगत का कहना है कि अगर यह रकम वसूली गई होती तो न सिर्फ गऊशाला के भूलभूत ढांचे में सुधार होता बल्कि गऊशाला प्रबंधकों का उत्साह भी बढ़ता।
अहम पहलू यह है कि महालेखाकार द्वारा बार-बार आपत्ति उठाने के बावजूद तत्कालीन शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस सरकारों ने इसकी जांच तक नहीं करवाई। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय निकाय विभाग ने जून 2015 में अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत इंडियन मेड फारेन लीकर (दस रुपये), देसी शराब और बियर पर पांच-पांच रुपये गऊ सेस वसूले जाने थे।
कैग रिपेार्ट में कहा गया है कि स्थानीय निकाय विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के बावजूद 23 आबकारी एवं कराधान कमिश्नर ने इसे वसूलने की कोशिश नहीं की। कैग द्वारा बार-बार सवाल खड़े किए जाने के बाद मोगा और मानसा के एईटीसी ने जवाब दिया कि आबकारी नीति में गऊ सैस की कोई व्यवस्था नहीं थी। इस वजह से गऊ सेस वसूल नहीं किया गया।
यह मामला 2015 से 2018 के बीच का है। 2015 में शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। जबकि 2017 में कांग्रेस की सरकार आ गई थी। बाद में 2019 में गऊ सेस को आबकारी नीति में शामिल कर लिया गया तब से यह टैक्स वसूला जा रहा है।
महालेखाकार ने इस बात पर सख्त एतराज उठाया कि जब स्थानीय निकाय विभाग ने अधिसूचना कर दी, तो फिर नगर निगम के दायरे में आते शराब की बिक्री पर सैस वसूल क्यों नहीं किया गया, जबकि इसे वसूलने की जिम्मेदारी एक्साइज कमिश्नर की थी। गऊ सेवा कमीशन के चेयरमैन सचिन शर्मा का कहना है कि यह गंभीर मुद्दा है, वह इस संबंध में अफसरों की जिम्मेदारी तय करने के लिए आबकारी एवं कराधान विभाग के मंत्री को लिखेंगे।
सचिन शर्मा का कहना है कि अगर यह टैक्स जमा हुआ होता तो गऊशाला पर लगता, जिससे कई समस्याओं का समाधान होता। वहीं, राजनीतिक रूप से यह भी कहा जा रहा है कि शराब ठेकेदारों के दबाव के कारण तीन साल तक यह टैक्स वसूल ही नहीं किया गया। जबकि इसकी अधिसूचना स्थानीय सरकार ने कर दी थी।